रुका रुका सा छोर है
रुका-रुका सा छोर है
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निलय-निलय में चोर है,
गली – गली में शोर है।
समय कभी रुकता नहीं,
रुका – रुका सा छोर है।
छिपा हुआ मानव कहाँ,
नज़र न आता खौर है।
निकल गया पल सुखद,
बदल गया अब दौर है।
न पास मनसीरत हुआ,
समझ न आया तौर है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)