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10 Aug 2019 · 3 min read

रिश्तों में कैंची

++रिश्तों में कैंची++
@दिनेश एल० “जैहिंद”

स्स्स्सा….. ! कैंची भी गजब की चीज है ! जहाँ घुसती है, वहाँ जोड़ नहीं सकती, काटती है | तोड़ना कितना आसान है और जोड़ना कितना कठिन !
आवश्यकता अविष्कार की जननी है | कभी जरूरत हुई होगी और बना डाली कुछ लोगों ने कैंची | उन्हें कब पता था कि ये ससुरी… क्या-क्या काटेगी ?
धरती के गर्भ से निकाले लोहे और कारखाने में भेज कर बनाई कैंची और फिर उठा लाए दुकानों में…. कपड़े काटने के लिए | …. और अब पता नहीं क्या-क्या काट रही है !
उधर स्टील सीट काट रही है तो इधर चादर काट रही है | उधर टिन काट रही है तो इधर पैंट काट रही है | उधर रबर काट रही है तो इधर शर्ट काट रही है | उधर प्लास्टिक काट रही है तो इधर पेटीकोट काट रही है | उधर रस्सी काट रही है तो इधर जेब काट रही है | है न गजब की बात | इतना से भी मन नहीं भरा तो उठा लाए लोगों ने अपने-अपने घरों में और शुरु हुआ अनाप-शनाप चीजें काटने का सिलसिला
……
कोई बाल काट रहा तो कोई मूँछें, कोई नाखून काट रहा तो कोई भौंहें, कोई नाक काट रहा है तो कोई कान |
अब बात यहाँ तक पहुँच गई है कि अब धीरे-धीरे लोगों के हाथ से फिसल कर दिमाग में घुस गई है ये और जब दिमाग में घुस गई है तो आप समझ लीजिए कि ये क्या-क्या काटे – गी ! पहले तो जुबान काट देती है, फिर बात काट देती है, यहाँ तक कि लोगों की सोच काट देती है, उनका ज्ञान काट देती है, उनका विवेक काट देती है और बना देती है खुद के समान उन्हें बेदर्द, ज़ालिम और खूँखार !
तभी तो इसका नुकसान घर, परिवार, समाज और देश में देखने को मिल रहा है |
ससुर बहु को नहीं पहचान रहा है | बाप बेटी को नहीं पहचान रहा है | भाई बहन को नहीं पहचान रहा है | देवर भाभी को नहीं पहचान रहा है | मालिक नौकरानी को नहीं पहचान रहा है | मालकिन नौकर को नहीं पहचान रही है | साधु सेवक को नहीं पहचान रहा है | महात्मा भक्त को नहीं पहचान रहा है |
फिर तो हो गया न सारे रिश्तों का खात्मा यहाँ | अब बचा ही क्या ?
अब बचा एक दिल…. ! तो भला आज के जमाने में दिल का कौन सुनता है ! सब दिमाग चला रहे हैं | हाँ….. ! कम्प्यूटराइज दिमाग ! अपना लाभ, अपना सुख, अपनी शांति ! ये तन का हो या मन का ! कोई फर्क नहीं पड़ता |
दूसरे के दुख-दर्द से भला किसी को क्या मतलब !
स्स्स्सा… कैंची ! कैंची जब कारखाने, दुकान, घर, दिमाग से होते हुए दिल में जगह बना लेगी तो आप ही सोचो कि अब कहाँ-कहाँ गाज गिरेगी | दूर के रिश्ते मौसी, मामी, चाची की तो बात ही छोड़ो…… खून के रिश्ते तक इसकी गाज में जल कर स्वाहा हो जाएंगे | ये अपना कुप्रभाव छोड़ने से नहीं चूकेगी | अपनी कतरने की आदत से बाज नहीं आएगी | अपने काटने की फितरत को कभी त्याग नहीं सकती है और ये मानवी सद्गुणों को काटकर दुर्गुणों में बदल देगी | ये
दयालुता, उदारता, सरलता, लज्जता, शुचिता, महानता आदि सद्गुणों को जड़ समेत मानव आत्मा से निचोड़ कर मानव को बिल्कुल भाव विहिन बना देगी !

===============
दिनेश एल० “जैहिंद”
11. 03. 2019

Language: Hindi
Tag: लेख
397 Views

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