#कुंडलिया//
रिश्ते होते नाज़ हैं , टुकड़े-टुकड़े आज।
हावी इनपर स्वार्थ है , गुम है लाज समाज।।
गुम है लाज समाज , पिता-माता अनदेखी।
एकल हुये परिवार , बघारें इसपर शेखी।
सुन प्रीतम की बात , सुगंधी चंदन घिसते।
रहे दिलों में प्रेम , तभी बने रहें रिश्ते।
धोखा करना पाप है , करना न कभी भूल।
काँटों बदले कब मिलें , यहाँ किसी को फूल।।
यहाँ किसी को फूल , साथ दो साथी बनके।
कभी न छोड़ो साथ , रहो यार संग तनके।
सुन प्रीतम की बात , चलेगा गीला-सूखा।
धीरज से ले काम , नहीं देना पर धोखा।
#आर.एस. ‘प्रीतम’