रिश्तों की ज़िन्दगी में जरूरत बनी रही
रिश्तों की ज़िन्दगी में जरूरत बनी रही
कितनी भी उनसे चाहे शिकायत बनी रही
फूलों के साथ साथ रहें जैसे शूल हैं
नफरत के साथ दिल में मुहब्बत बनी रही
हमको न मिल सकी जो मुहब्बत तो क्या हुआ
वो नज़रों में हमारी इबादत बनी रही
यादों की खिड़कियों से उन्हें ताकते रहे
वर्षों के बाद भी यही चाहत बनी रही
मिलते है लोग आज भी चलते उसूलों पर
इंसानियत ही उनकी तो ताकत बनी रही
पैसे की भूख में गिरा इंसान इसलिये
लालच में और पाने की आदत बनी रही
बिगड़े हुये हमारे सभी काम बन गए
बस वक़्त की ही हम पे इनायत बनी रही
टूटे तो ज़िन्दगी में कई बार ‘अर्चना’
थे हौसले बुलंद तो हिम्मत बनी रही
15-03-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद