नजरिया रिश्तों का
एक जिंदगी एक है जीवन,सब सुख दुःख का मेला है।
कभी बने खुशियों की लहरे,कभी बन जाएं दुखों का रेला है।।
जीवन के इस लंबे सफर में, क्या क्या और क्योंकर हमने झेला है।
क्योंकि जीवन के उतार चढ़ाव में,जो सब पाकर भी अकेला है।।
इस समाज और रिश्तों को तुमसे कब कब क्या लेना क्या देना है।।
यह समाज जो बंटा हुआ है, गरीबों और अमीरों के नाजुक से स्तर पर।
नहीं अछूता है कोई रिश्ता , है अमीर तो सबका लेकिन हर गरीब अकेला है।।
मैंने इस जीवन में अपने रिश्तों को, जब जब जीतने करीब से देखा है।
तब तब ही महसूस किया है की तू खड़ा बीच में सबके फिर भी अकेला है।।
कहे विजय बिजनौरी नजरिया रिश्तों का, अलग अलग और अपना है।
मेल खाए तो हर रिश्ता है अपना और मेल ना खाए तो रिश्ता सपना है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी