रिश्ते..
रिश्ते..
फूल की नाजुक
पंखुरी जैसे होते हैं,
महकते है, महकाते हैं.
रिश्ते पेड़ पर
लगे फल की तरह हैं
अगर भावनाओं, विश्वास
और अपनेपन की खाद न मिले
वृक्ष जर्जर हो जाएगा
फल भी फिर रह नहीं पाएगा.
रिश्ते..
अगर बोझ बनने लगें
अपनी अहमियत खोने लगें
अहम का कीट कतरने लगे
औपचारिकता ही जब शेष रहे
रिश्ते..
तब अर्थ खोने लगते हैं,
फूल भी होते हैं, फल भी.. पर
क्रत्रिम, ना सुवास, न खुशबु,
बस बनाए रखने के लिए
जीवन रूपी ड्रॉइंग रूम को
सजाये रखने के लिए
शेष रह जाते हैं
अशेष हो जाने के लिए
हिमांशु कुलश्रेष्ठ