रिश्ते
यह दुनिया,
रिश्ते को ,
जीना भूल रही है ।
रिश्ते बस ,
भुना लिये जाये,
यही सच ,
कबूल रही है ।
छल कपट और ,
मीठी मिसरी,
रिश्तो को ,
कभी नही,
चाहिए थी ,
वहां तो बस,
खामोशी से ,
निभा दीजिये,
यही एक,
रस्म है।
मगर ,अब ,
वो ,स्नेह और,
आतमीयता नही,
प्रेम
नही,
आज तो ,
आडंबरों के,
ढोल है,
खूब बजाये जाते हैं,
आजकल रिश्ते निभाये कम,
उससे ज्यादा,
जताये जाते है ।