रिश्ते
कोई ना संभालता,रिश्तों की सौगात ।
रिश्ते पूँजी थे कभी,है ये कल की बात ।।
रिश्ते नर को थामते,ज्यों पतंग को डोर ।
डोरी कटी जो पतंग की ,फिर जाने किस ओर।।
रिश्ते धूसर हो गए,नहीं रही वह बात ।
प्रेम आपसी ना रहा,ठण्डे सब ज़ज्बात ।।
आज बुढ़ापा सोचता, रख ठुड्डी पर हाथ ।
किस किस ने किस किस समय, नहीं निभाया साथ ।।
भाग दौड़ का है शहर, चैन बसा है गाँव ।
जीवन की इस धूप नें,रिश्ते ठण्डी छाँव ।।