रिश्ते
रिश्ते होते हैं बड़े नाजुक जैसे हो कांच,
ना आने दीजिये उन पर कभी भी आंच।
बड़ा मुश्किल होता है जोड़ना तोड़ के,
चला जाता है जब कोई अपना मुँह मोड़ के।
आती है आड़े जब गलतफहमियों की दीवार,
दिल भी मान जाता है कभी अपनों से हार।
नहीं करता कोई पहल रूठों को मानाने की,
खुदगरजी भुला कर उनको पास लाने की।
वक़्त के साथ धुंधली हो जाती हैं सारी तस्वीरें,
रह जाती हैं बस पत्थर पर खीचीं कुछ लकीरें।
पछतावा और रोष रह जाता है बस अपने साथ,
चाह कर भी थाम नहीं पातें हम अपनों का हाँथ।
वक़्त रहते गर भुला कर अपना अहम्,
मिटा दें गिलें शिकवें पास आकर हम।
तो बचा सकते हैं हम ये नाजुक “रिश्तें”,
कट जायेगा ये सफर तब हँसते हँसते।