– रिश्ते व रिश्तेदारों से हारा हु –
रिश्ते व रिश्तेदारों से हारा हु –
दुनिया से भले ही जीता हु,
अपनो से हर बार में हारा हु,
रिश्ते – नाते बेडिया बंधन की मेरे,
अपने मेरे है विभीषण से कोई नही कुंभकर्ण सा,
अपनो की खातिर मे कितनी बार,
जिंदगी से जंग लड़ आता हु,
वो खुर्दगर्ज अपने मेरे,
अपने फायदे के लिए कर गए मेरा बुरा हाल,
अब कहते वे मुझको अब तू अपनी जिंदगी संभाल,
जिनके लिए में जीता रहा जिंदगी मजदूरों सा हाल,
आज वो कहने लगे क्या किया तूने भरत कमाल,
सब करते जो तूने किया कोई कुछ नया न किया,
उनकी इस बात से में खुद को अकेला पाता हु,
भले ही दुनिया को जीत लू पर अपनो से में हार रहा,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान