–रिश्ते नाते खो गए –
इस महामारी ने किया कितना बेहाल
जिधर नजर जाती सब का बुरा हाल
किस की मौत किस जगह हो रही
किसी चीज का नहीं बाकी रहा तालमेल
खामोश सा हो गया सारा जहान
इंसान का रो रो कर हो रहा बुरा हाल
न जाने किस डगर पर क्या होगा
किस को जाकर सुनाएगा अपना कोई हाल
किसी के नसीब में क्या लिखा है
कहाँ तक कोई करेगा सब की पड़ताल
न जाने कहाँ की मिटटी नसीब होगी
कौन करेगा संस्कार, बन गया जी का जंजाल
सारी रचना को कर दिआ धराशाई
इंसान इंसान से डरने लगा होने लगा बदहाल
अजीत कुमार तलवार
मेरठ