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28 May 2022 · 5 min read

*रिश्ते के लिए खिंचवाया जाने वाला फोटो (हास्य-व्यंग्य)*

रिश्ते के लिए खिंचवाया जाने वाला फोटो (हास्य -व्यंग्य)
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छत पर धूप लगाने के लिए संदूक रखा गया था । संदूक में अन्य चीजों के अलावा कुछ पुरानी एल्बमें भी थीं। पुराने फोटो जो अब विस्मृत हो चुके थे । दादी का संदूक था और पोता – पोती छत पर पहुँच गए ।संदूक खुला हुआ था । सामान बिखरा हुआ धूप खा रहा था । एक एल्बम में दादी का फोटो देखा तो दोनों बच्चे आश्चर्य प्रकट करने लगे। दादी को पहचानने में उन्हें जरा भी दिक्कत नहीं आई। वह फोटो दादी का विवाह से पहले का था । बड़ी अजीब तरह का फोटो था । दादी दुबली पतली थीं। साड़ी पहने हुए किसी स्टूल पर अपने दाहिने हाथ का सहारा देकर खड़ी हुई थीं। स्टूल पर एक फूलदान रखा हुआ था, जिस पर कुछ फूल सुशोभित थे। फोटो ब्लैक एंड वाइट था। पचास साल पहले कलर फोटो का रिवाज शुरू कहाँ हुआ था ?
सबसे ज्यादा तो दादी के चेहरे पर लाज और शर्म का जो भाव था ,वह बच्चों को बहुत भाया । फोटो उठाकर छत से नीचे आए और दादा जी से कहने लगे “यह फोटो तो दादी जी का लग रहा है ? ”
पुराना फोटो देखकर दादा जी को भी आकर्षण जगा। फोटो हाथ में लिया और देखते ही चौंक गए । तुरंत दादी को आवाज दी “अरे सुनती हो ! तुम्हारे रिश्ते के लिए फोटो आया है ! जरा देख लो ! और सही जँचे तो लड़की को पास कर दो ।”
दादी सुनते ही मुस्कुराती हुई दौड़ी चली आईं। फोटो देखा तो झट हाथ में ले लिया ” अरे ! यह कहाँ से निकल आया ? “और फिर सुनहरी यादों में खो गईं।
” तुम्हें कहाँ से मिला बच्चों ? ”
“संदूक में फोटो की पुरानी एल्बम थी । उसी में यह रखा हुआ था ।”
साठ साल की उम्र में भी दादी को अपने नवयौवन के दिन याद आ गए । तब वह बी.ए. में पढ़ती थीं। शादी की बातचीत शुरू होने लगी थी । लेकिन उस समय सबसे पहला काम एक सुंदर – सा फोटो खिंचवाने का होता था । फोटो घरों पर तो खिंच नहीं पाता था । इसके लिए किसी फोटोग्राफर के स्टूडियो में जाना पड़ता था ।
दादी ने बच्चों को अपने पास बिठाया और बताने लगीं ” जब हमारा फोटो खिंचवाने का नंबर आया ,तब हम बहुत घबरा रहे थे । रिश्ते के लिए फोटो जाना था। पता नहीं कैसा फोटो खिंचे ? वैसे भी शादी का नाम सुनकर घबराहट बहुत हो जाती थी। उस पर भी सबसे ज्यादा समस्या साड़ी पहनने की थी। हमने साड़ी कभी पहनी नहीं थी।”
बच्चों ने यहीं पर टोक दिया “आप तो हमेशा से साड़ी पहनती हैं । पहले क्यों नहीं पहनी थी ? ”
“पहले लड़कियाँ शादी से पहले साड़ी कहाँ पहनती थी ? सलवार – कुर्ता पहनते थे। अब साड़ी बाँधना हमसे आता नहीं था। मम्मी इस काम में हाथ बँटाने के लिए तैयार नहीं थीं। लिहाजा भाभी को तैयार किया गया कि वह फोटोग्राफर के स्टूडियो में हमारे साथ जाएँगी और वहीं पर साड़ी पहना कर हमें तैयार करेंगी। मेकअप के बारे में पिताजी की यह सख्त हिदायत थी कि मेकअप ऐसा होना चाहिए जिससे जरा – सा भी आभास न होने पाए कि लड़की का मेकअप कराया गया है । अगर पोल खुल गई तो सारा खेल चौपट हो जाएगा और फोटो रिजेक्ट कर दिया जाएगा ।”
” फिर क्या हुआ ? ” -बच्चों की उत्सुकता बढ़ रही थी ।
” होना क्या था ! जब हम फोटोग्राफर की दुकान पर गए ,तब उसने कहा कि फोटो बहुत अच्छा खींच दूंगा । बस साड़ी बाँधने की बात है । मगर संयोग देखो , जितनी बार हमारी भाभी ने साड़ी बाँधी, वह बार-बार खुल जाती थी । भाभी परेशान हो गईं। फोटोग्राफर आवाज लगाते – लगाते थक गया कि लड़की तैयार हो गई हो तो बाहर निकलो । मगर हमारी साड़ी ने बँधकर ही नहीं दिया । हार कर भाभी ने कहा कि तुम्हें घर पर साड़ी बाँधने की प्रैक्टिस करवाऊंगी। फिर किसी दिन फोटो खिंच जाएगा। बैरंग वापस लौट आए । फोटोग्राफर भी मुँह देखता रह गया । घर आकर कई दिन तक साड़ी बाँधने की प्रैक्टिस की , तब जाकर फोटोग्राफर की दुकान पर फोटो खिंचवाने का नंबर आया । छुईमुई की तरह हम खड़े हो गए । काँप रहे थे । भाभी ने समझाया कि जयमाल लेकर थोड़ी जा रही हो, जो डर लग रहा है । तुम्हारा केवल फोटो खींचा जा रहा है । हमने डरते – डरते कहा था कि मगर खींचा तो रिश्ते के लिए भेजने के लिए ही जा रहा है । हम हड़बड़ाहट में अपने विचारों को प्रकट भी नहीं कर पा रहे थे । बस यह कहो कि डूबते को तिनके का सहारा ! लंबा स्टूल हमारे बहुत काम आया । हमने अपनी दाहिनी कोहनी उस पर टिका दी और संसार का सबसे बड़ा सहारा हमें उस समय उपलब्ध हो गया। हमारा फोटो जब तुम्हारे दादाजी के पास पहुँचा तब हमारे ससुर जी की पारखी नजर थी । उन्होंने पहचान लिया कि लड़की नर्वस है और हमारे पिताजी से पूछा कि क्या लड़की को घबराहट की कोई समस्या तो नहीं होती ? पिताजी ने तुरंत बात को समझ लिया और बोले कि फोटो खींचते समय घबराने लगी थी । हमारे ससुर जी इस पर हँस पड़े और बोले कि कोई बात नहीं, लड़की देखने का प्रोग्राम बना लेंगे और भगवान ने चाहा तो सब ठीक निकलेगा । इस तरह तुम्हारे दादा जी ने हमारे फोटो को पसंद किया और उसके बाद हमें देखकर पसंद कर लिया ।”
फोटो की ऐसी कहानी सुनकर पोता- पोती खुशी में झूम उठे । फोटो हाथ में लिया और घर से बाहर निकल पड़े । दादा-दादी उन्हें बुलाते ही रह गए । दोनों बच्चों ने मौहल्ले के हर घर में जाकर दादी की फोटो दिखाई। बच्चों ने पूरे मोहल्ले में हल्ला मचा दिया “देखो हमारी दादी का फोटो उनकी शादी के रिश्ते के लिए दादाजी के पास आया था ! ”
बस फिर क्या था ! मौहल्ले में सबके घरों में पुराने संदूक खँगाले गए । पुरानी एल्बम झाड़ – पोंछकर बाहर निकली और सब के पास बिल्कुल वैसा ही एक फोटो सँभाल कर रखा हुआ था । जितनी दादियाँ थीं, सबको अपनी जवानी उस फोटो में नजर आने लगी । सब ने अपने युवावस्था के दिनों को याद किया और वह समय उनकी आँखों में तैर गया जब वह बी.ए. में पढ़ती थीं और रिश्ते के लिए फोटो भेजने के लिए उनका फोटो फोटोग्राफर के पास जाकर खिंचवाया गया था । तब कितने पापड़ बिले थे । सबको याद आने लगे ।
शाम को जब सुहाना मौसम था ,सब दादियाँ युवावस्था के अपने फोटो के साथ खेलती हुई नजर आ रही थीं। पूरे मोहल्ले में उत्सव मन रहा था ।
अब न वह फोटो रहे ,न उनको खींचने वाले फोटोग्राफर ,न साड़ी बाँधकर फोटो खिंचवाने की अनिवार्यता रही। अब तो सबके पास मोबाइल है । फेसबुक और व्हाट्सएप पर फोटो हर समय उपलब्ध रहते हैं । मगर उस जमाने में फोटो खिंचवाते समय जो लाज ,शर्म और घबराहट हुआ करती थी -उस का मजा ही कुछ और था।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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