रिश्तेदार
मुमकिन नहीं उन रन्जिशों को भुलाना,
जो हर वक़्त ज़ेहन मे रहती हैं,
क्या कहे तकलीफ उन आँखों की,
जो अपनो मे छिपे दुश्मनो को सहन करती हैं,
नज़रों मे गुस्सा, चेहरे पे मुस्कुराहट,
दिल मे प्यार और शब्दों मे खामोशी रखना कोई आसान काम नहीं,
जो अपने होकर भी पराये बन गए,
उनसे दूर हो जाना कोई आसान काम नहीं,
झूठा प्यार उनका देखकर दिल सहम सा जाता हैं,
इस दिल को समझाना कोई आसान काम नही,
कभी जान छिड़कते थे उनपर,
आज नफरत कर पाना कोई आसान काम नही,
वो मतलब के रिश्ते निभाते क्यों है,
जब दिल मिलते नही तो मिलाते क्यों है,
पैसों के लिए, अपनी ख्वाहिशों, अपनी जरूरतों के लिए,
क्यों नही सोचते,
कोई मर मिटा है उनके लिए,
कोई लुट गया है उनके लिए,
जो आँखें उनकी कामयाबी का ख़्वाब देखती थी,
उन्हीं आँखों मे वो आँसू दे गए,
किस अपने से शिकायत करे इनकी,
सारे अपने तो मतलबी हो गए,
लाचारी देखकर रिश्तों की वो चिड़ाने पर आ गए,
हम डूब रहे थे समुंदर मे,
वो हर अहसान दरकिनार कर खुद किनारे पर आ गए,
पर आजकल बड़े अदब से पेश आते है,
बात भी मानते है सारी,
कुछ तो गड़बड़ है,
शायद उन्हें फ़िर जरूरत है हमारी।
✍️वैष्णवी गुप्ता(Vaishu)
कौशांबी