रिश्तें
रिश्तों में जबतक ‘अर्थ’ नही,
सच है उनमें कोई अर्थ नही।
गर न निज स्वार्थ की सीमा हो,
क्या एहसासों का अफ़साना व्यर्थ नही।।
दिखती है दीवारें भावो पर,
ना कोई मलहम दिल के घावों पर,
तर्को की वेदी पर जज्बात बिके,
भाव रहित इन्सान दिखे,
मतलब की है बस रीत यहाँ,
प्रीत का कोई अर्थ नही।।