रिश्ता बनाम प्रेम
जीवन के 44 बसंत पार कर
अब समझ पाई हूँ मैं,
रिश्तों में प्रेम ढूंढ़ना
भूल ही थी मेरी ।
प्रेम तो सहज भाव है ।
ये तो निराधार है ।
किसी से होता है तो होता है,
और नहीं होता तो
सारे प्रयत्न हार जाते;
प्रेम असफल ही होता है।
किसी से रिश्ता होना
अलग बात है,
और किसी से प्रेम होना
बिल्कुल ही अलग बात है ;
दोनों सापेक्ष तो बिल्कुल नहीं
हाँ सांयोगिक हो सकते हैं
पर विरले ही ।
तभी तो रुक्मिणी जी की पूरी तन्मयता भी
हार गई; कृष्ण को पूरा पाने में,
जबकि राधिका जी
बिना किसी रिश्ते के भी
कृष्ण को राधामय कर गयीं
और हमारे कन्हैया
राधेकृष्ण कहलाए ।