रिश्ता – दीपक नीलपदम्
इसकी तामीर की सज़ा क्या होगी,
घर एक काँच का सजाया हमने ।
मेरी मुस्कान भी नागवार लगे उनको,
जिनके हर नाज़ को सिद्दत से उठाया हमने ।
वक़्त आने पर बेमुरव्वत निकले,
वो जिन्हें गोद में उठाया हमने ।
सितम ढाने का हिसाब किया था हमने,
जाने किस-किस को ना रुलाया हमने ।
मन इसी बात से परेशान रहा,
मासूम दिल तो कोई न दुखाया हमने ।
अफ़सोस का एक बीज़ उगाया हमने,
हाँ, किसीका दिल आज दुखाया हमने ।
कैसे एक रिश्ता दरकने वाला था,
कैसे मुश्किल से बचाया हमने ।
(C) @दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”