रिश्ता उनसे
रिश्ता उनसे रोज़ निभाना पड़ता है।
शाम ढले घर लौट के जाना पड़ता है।।
धीरे धीरे सबको अच्छा लगता है।
पहले तो माहौल बनाना पड़ता है।।।
रोज़ हमें दो जून की रोटी मिल जाए।
सर अपना इसीलिए खपाना पड़ता है।।
शे’र मुहब्बत के कहना आसान नही।
खुद को खुद का खून पिलाना पड़ता है।।
विजय उन्हें कुछ कहना है तो सुन लो ना।
सनम जो रूठे यार मनाना पड़ता है।।
विजय बेशर्म गाडरवारा
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