रिमझिम बरसो
** नवगीत **
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रिमझिम बरसो काले बदरा,
सबकी प्यास बुझाओ।
नन्हे नन्हे पर फैलाए,
देखो उड़ी जा रही चिड़िया।
चहक रही है डाली डाली,
सुन्दर नन्ही सी गौरैया।
बादल से जब तब है कहती,
अब तो जल बरसाओ।
रिमझिम बरसो………
हरी भरी टहनी के कुछ कुछ,
पत्ते क्यों अब सूख रहे हैं।
झुलसाती तीखी गर्मी में,
आखिर घन क्यों रूठ रहे हैं।
देखो सावन मास आ गया,
अब तो मत तड़पाओ।
रिमझिम बरसो………
सबके मन भाता है सावन,
खूब बरसता है जब पानी,
नदियां झरने और सरोवर,
बहते जब करते मनमानी।
वर्षा ऋतु में जोर है कितना,
यह सबको बतलाओ।
रिमझिम बरसो………
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)