Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
2 Nov 2022 · 5 min read

*रिपोर्ट/ आर्य समाज (पट्टी टोला, रामपुर) का वार्षिकोत्सव*

रिपोर्ट/ आर्य समाज (पट्टी टोला, रामपुर) का वार्षिकोत्सव
________________________________
ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति
________________________________
रामपुर 2 नवंबर 2022 बुधवार, आर्य समाज, पट्टी टोला, रामपुर उत्तर प्रदेश में गीता के अठारहवें अध्याय के इकसठवें श्लोक में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से जो यह बात कही थी कि ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में स्थित होता है, उसे उद्धृत करते हुए स्वामी सच्चिदानंद जी ने दूसरे दिन के प्रातः कालीन सत्र में प्रवचन करते हुए भारत के सनातन ज्ञान से समस्त श्रोताओं को जोड़ दिया। आपने अपने प्रभावशाली संबोधन में पूजा की वास्तविक विधि को अंगीकृत करने के लिए श्रोताओं का आवाहन किया कि वह सर्वप्रथम ईश्वर के वास्तविक स्वरूप को जानें तथा ईश्वर की पूजा का सही विधान क्या होना चाहिए, इस पर विचार करें। इसके लिए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकले हुए सदुपदेश गीता को उद्धृत करने में स्वामी सच्चिदानंद जी कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं ।
परमात्मा केवल तीर्थों के भ्रमण से प्राप्त नहीं होता, परमात्मा केवल कुछ तीर्थ-नगरों अथवा मंदिरों में भ्रमण से भी प्राप्त नहीं हो पाता; वस्तुतः उसको प्राप्त करने के लिए तो अपने हृदय में ही झॉंकना पड़ता है क्योंकि परमात्मा तो हमारे हृदय में ही स्थित हैं।
स्वामी सच्चिदानंद जी ने ब्रह्म-यज्ञ की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि ब्रह्म-यज्ञ ही एकमात्र ऐसा ही यज्ञ है जो संन्यासियों के लिए भी अनिवार्य है । अन्य प्रकार के यज्ञों में जहॉं धन की आवश्यकता पड़ती है वहीं ब्रह्म-यज्ञ में एक पैसे की भी खर्च की जरूरत नहीं होती । यह परमात्मा की पूजा-उपासना है जिसमें कोई खर्चा नहीं आता, क्योंकि यह हृदय में स्थित परमात्मा को जानने-समझने और उससे मिलने का यज्ञ है । बाहरी साधनों से इस यज्ञ में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती ।भौतिक पदार्थ ईश्वर की पूजा में सहायक नहीं हो सकते । हॉं, पर्वत और नदियों के तट अवश्य ऐसे स्थान होते हैं जहां का प्राकृतिक वातावरण ईश्वर के साथ जुड़ने के लिए व्यक्ति को प्रेरक का काम कर सकता है। लेकिन साधना तो अपने भीतर की ही करनी होती है । अष्टांग योग मनुष्य को ध्यान और समाधि की दिशा में ले जाकर सहज रूप से ईश्वर से मिला देता है ।
ईश्वर निराकार है । उसकी कोई मूर्ति निर्मित नहीं की जा सकती । उसकी कोई आकृति नहीं होती । वह सब जगह है। स्वामी सच्चिदानंद जी ने परमात्मा के वास्तविक स्वरूप से श्रोताओं को अवगत कराया ।
बना मन मंदिर आलीशान
-इस गीत की पंक्ति से भी यही ध्वनित होता है कि मन को ही मंदिर बनाकर हम निराकार ब्रह्म को प्राप्त कर सकते हैं । ईश्वर को प्राप्त करने की राह सीधी-सच्ची और सरल हृदय की यात्रा है । इस संबंध में स्वामी सच्चिदानंद जी ने गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस में कही गई इन पंक्तियों को श्रोताओं को स्मरण दिलाया । आपने कहा :-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा
मोहि कपट छल छिद्र न भावा
अर्थात चतुराई के माध्यम से हम न तो भगवान को प्राप्त कर सकते हैं और न ही जीवन में अपना भला कर सकते हैं । वर्तमान समय में भक्तों ने भगवान को अपने जैसा बनाते हुए तथा संसार के पदार्थों से प्रसन्न करते हुए उसे पाने की चेष्टा की है तथा विफल रहे हैं । केवल इतना ही नहीं, विकृतियॉं इतनी बढ़ गई हैं कि लोग मंदिरों में अपनी सांसारिक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं । इस प्रकार वे भगवान को पाने के लिए पूजा नहीं करते अपितु भगवान से कुछ सांसारिक पदार्थ प्राप्त करने के लिए उसकी आराधना करते हैं। इस दृष्टि से धर्म एक धंधा या बिजनेस होकर रह गया है । यह दृष्टि मनुष्य के लिए कभी भी कल्याणकारी नहीं हो सकती। भगवान तो ऑंख बंद करके ही मिलता है, क्योंकि वह हमारे भीतर होता है । यह बात मूर्ति के सम्मुख खड़े होने वाला उपासक भी भलीभांति जानता है । इसीलिए तो वह मूर्ति के सम्मुख खड़े होकर भी अपनी आंखें बंद कर लेता है । स्वामी सच्चिदानंद जी ने कहा कि यह जो सांसारिक इंद्रियां हमें प्राप्त हुई हैं, हम उन के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकते । इनसे पार जाकर ही ब्रह्म सुलभ हो सकता है ।
आपने अपने गूढ़ वैचारिक प्रवचन के मध्य श्रोताओं को मनोरंजन कराते हुए एक सेठ जी की कथा भी सुनाई जो तीर्थ-यात्रा पर अपने साथ एक सेवक को ले गए थे, जिसने चोरी करने के इरादे से सेठ जी के सारे सामान को खंगाल डाला लेकिन रुपया-पैसा नहीं मिला । वस्तुतः वह अपने झोले को देखना भूल गया था, जबकि सेठ जी अपना सारा रुपया-पैसा रोज रात को उसके झोले में रख दिया करते थे । अर्थात अपने भीतर जब खॅंगालने का काम करोगे, तो मनवांछित वस्तु मिल जाएगी, स्वामी जी का उद्देश्य कथा सुनाने के पीछे यही था ।
आपने जनसमूह को सचेत किया कि धर्म के क्षेत्र में हम इतनी विकृतियां पाल चुके हैं कि संतों और महात्माओं को ही भगवान समझकर पूजना आरंभ कर देते हैं तथा कुछ संत भी ऐसे हो गए हैं जो अपने भक्तों को यह बताते हैं कि मैं ही भगवान हूॅं। जब हमारे पास राम और कृष्ण जैसे महान जीवन-चरित्र विद्यमान हैं, तब हमें किसी अन्य सांसारिक व्यक्ति के नाम से मंदिर बनाने तथा उसकी पूजा करने की क्या आवश्यकता है ? स्वामी सच्चिदानंद जी ने प्रश्न किया। आपने एक प्रसिद्ध बाबा के नाम पर खोले गए मंदिरों के औचित्य पर भी प्रश्न-चिन्ह लगाया ।
जैसे भक्त होते हैं, वह अपने हिसाब से भगवान का निर्माण कर लेते हैं । जबकि भगवान न कोई वस्तु खाते हैं, न पीते हैं, न उनका रंग गोरा है न काला है, वह न कोई रूप अथवा आकृति लिए हुए होते हैं । निराकार ब्रह्म को अपने भीतर प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होना ही वास्तविक पूजा है ।
स्वामी जी ने अंत में समस्त श्रोताओं से निवेदन किया कि अगर उनके विचारों से किसी को कोई ठेस पहुंची हो तो कृपया क्षमा कर दें, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि विकृत विचार का खंडन करने से ही शाश्वत और निर्मल दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं तथा लक्ष्य को प्राप्त कर पाएंगे । कार्यक्रम में सुमधुर भजन गायिका गुरुकुल की प्राचार्या पुष्पा शास्त्री जी ने भगवान जैसा कोई नहीं भजन सुना कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया । कार्यक्रम का सुंदर संचालन आर्य समाज रामपुर के पुरोहित बृजेश शास्त्री जी ने किया। आयोजन की देखरेख सुभाष चंद्र रस्तोगी जी के द्वारा संपन्न हुई।
————————————–
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

236 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
जब पीड़ा से मन फटता है
जब पीड़ा से मन फटता है
पूर्वार्थ
3579.💐 *पूर्णिका* 💐
3579.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अधबीच
अधबीच
Dr. Mahesh Kumawat
घाव मरहम से छिपाए जाते है,
घाव मरहम से छिपाए जाते है,
Vindhya Prakash Mishra
रिश्तों की बंदिशों में।
रिश्तों की बंदिशों में।
Taj Mohammad
ज़िम्मेदारियों ने तन्हा कर दिया अपनों से,
ज़िम्मेदारियों ने तन्हा कर दिया अपनों से,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
तथाकथित...
तथाकथित...
TAMANNA BILASPURI
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
महकती नहीं आजकल गुलाबों की कालिया
Neeraj Mishra " नीर "
आज भी...।।
आज भी...।।
*प्रणय*
पिछले 4 5 सालों से कुछ चीजें बिना बताए आ रही है
पिछले 4 5 सालों से कुछ चीजें बिना बताए आ रही है
Paras Mishra
यह सावन क्यों आता है
यह सावन क्यों आता है
gurudeenverma198
Mental health
Mental health
Bidyadhar Mantry
शोर है दिल में कई
शोर है दिल में कई
Mamta Rani
शेर
शेर
पाण्डेय नवीन 'शर्मा'
*आओ हम वृक्ष लगाए*
*आओ हम वृक्ष लगाए*
Shashi kala vyas
समय
समय
Annu Gurjar
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Mukesh Kumar Sonkar
वाह भाई वाह
वाह भाई वाह
Dr Mukesh 'Aseemit'
अन्तस की हर बात का,
अन्तस की हर बात का,
sushil sarna
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं
सुबह की चाय हम सभी पीते हैं
Neeraj Agarwal
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ....!
प्रिये ! अबकी बार तुम्हारे संग, दीपावली मनाना चाहता हूँ....!
singh kunwar sarvendra vikram
खुदा तो रुठा था मगर
खुदा तो रुठा था मगर
VINOD CHAUHAN
"जुल्मो-सितम"
Dr. Kishan tandon kranti
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह
तन्हाई
तन्हाई
ओसमणी साहू 'ओश'
आया बाढ़ पहाड़ पे🙏
आया बाढ़ पहाड़ पे🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच
Dr fauzia Naseem shad
प्रेम, अनंत है
प्रेम, अनंत है
हिमांशु Kulshrestha
मन
मन
Ajay Mishra
वोट कर!
वोट कर!
Neelam Sharma
Loading...