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29 Aug 2018 · 1 min read

रिजर्वड सीट

जच्चा वार्ड में रोज की तरह चहल पहल थी । ड़ाक्टर अपनी ड्यूटी पे मुस्तैदी के साथ महिलाऑ की सश्रुषा मे व्यस्त थी।अचानक वार्ड मे सरगर्मियां बढ़ जाती हैं।दो महिलाओं को एक साथ प्रसूति दर्द होता है। नर्से यकायक हरक़त मे आ जाती हैं।डाक्टर की सहायता से दोनो मंहिलाओं की प्रसूति सुरक्षित सम्पन्न हो जाती है। पृसुता मंंहिलाओं में से एक सवर्ण जाति की होती है दूसरी अनुसूचित जाति की। सवर्ण के गौर वर्ण का पुत्र जन्म लेता है।शूद्र जाति की महिला के श्याम वर्ण का पुत्र पैदा होता है। जच्चा वार्ड में खुशी की लहर दौड़ जाती है।अनुसूचित जाति की महिला खुशी का इजहार करके पूरे वार्ड को सर पे उठा लेती है।और सवर्ण म्महिला के चेहरे पे मायुसी छायी हुयी थी। पड़ोसन पृसूता ने जिज्ञासा वश पूछा बहन तुम्हारे लड़का हुआ है और तुम खुश नही हौ रही।क्या वजह है बहना?
क्या करुँ बहना मेरी खुशियों पर तो ग्रहण उसी समय लग गया जब तेरे भी बेटा पैदा हुआ।तेरा बेटा अपने मुख म्में आरक्षण का स्वर्णिम चम्मच लेकर पैदा हुआ है और सरकारी सिंहासन अपनी किस्मत मे लिखवा के लाया है।मेरे बेटे की किस्मत मैं तो संघर्ष ही संघर्ष लिखा है।वो बेचारा तुम खुशियों की आरक्षित सीट वालों की जूतियाँ चटकाता रहेगा ता ज़िन्दगी।अब तू ही बता बहना मैं खुशियां मनाऊ तो मनाऊ कैसे। इस कड़वी सच्चाई को सुनकर वार्ड में फिर से मायुसी पसर गयी।सवर्ण की खुशियों की चाभी उस वार्ड में किसी के पास भी नही थी।भगवान के पास भी नहीं।

Language: Hindi
390 Views
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