राह यही है सूर्य सभी को जाना है
बह्र -बहरे मुतदारिक मुजाइफ़ मखबून मक़तूअ महजूफ़
वज्न-22,22,22,22,22,2
काफिया सुलझाना (आना की बंदिश)
रदीफ -है।
जोश जिगर में जिंदा है बतलाना है
सरहद की रक्षा में शीश कटाना है //१
मुश्किल जब आएगी देखा जाएगा,
आज अभी क्यों बिना वजह घबड़ाना है//२
दुख-सुख आना-जाना लगा रहेगा जी,
जीवन एक पहेली है सुलझाना है//३
अपना उल्लू सीधा करना है सबको,
जाति धर्म में जनता को लड़वाना है//४
दिल नादानी कर बैठा है इश्क़ हुआ,
जख्म जिगर पर मुझको भी अब खाना है//५
झूठे वादे ख्वाब दिखाना है तुमको,
तेरी बातों में मुझको नहीं आना है//६
नफ़रत करना सिखा रहे हो जनता को,
संसद में लगता है तुम को जाना है//७
तेरी यादों में तकिये गीले रहते,
आँखों में तिनके का सिर्फ बहाना है//८
ख्वाबों में आना जब भी मिलना हो तो,
प्यार का दुश्मन ज़ालिम यार जमाना है//९
माया में उलझा मानव यह भूल गया,
सांसों की डोरी का ताना-बाना है//१०
माटी का पुतला माटी मिल जाएगा,
राह यही है ‘सूर्य’ सभी को जाना है//११
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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