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28 Dec 2020 · 1 min read

राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे

ग़ज़ल…

राह में कुछ लोग अब भी मुस्कराते चल रहे,
लग रहा है इस तरह वह कुछ छुपाते चल रहे।

देखकर हैरान उनकी हरकतों से हूँ मगर,
जानता हूँ आग पानी में लगाते चल रहे।

यह तरक्की हो रही जो जेब से तो है नहीं,
फिर भला अहसास इतना क्यों कराते चल रहे।

धर दिया जिसने चरण में शीश लाखों ऐब ले
दूध का उसको धुला देखो बताते चल रहे।

गर कहीं कोई खड़ा हक के लिए है हो गया,
आशियाना देखिए उसका जलाते चल रहे।

पूछना वाजिब नहीं उनसे वज़ह तकलीफ़ की,
जानते है सच मगर खुशियाँ दिखाते चल रहे।

मानिए ‘राही’ सियासत का नशा होता अजब,
गाँव से लेकर शहर सबको पिलाते चल रहे।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही

3 Likes · 3 Comments · 215 Views
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