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14 Oct 2019 · 1 min read

#ग़ज़ल-12

जीवन है छोटा-सा काम बहुत हैं
इक वस्तु यहाँ होते दाम बहुत हैं/1

केतन पातों-सा बाँट दिया है मन
जाति यहाँ मानव पर नाम बहुत हैं/2

ढोंगी को देता हूँ दोष कभी तो
कहते हैं जा तुझसे आम बहुत हैं/3

राधा हारी है निज हृदय यहाँ पर
फिर भी दीवाने राधा-गुलाम बहुत हैं/4

मन मैला मत कर तू भूल गया गर
सुबह भूले घर लौटे शाम बहुत हैं/5

तुम पग-पग पर रावण देख रहे हो
मैं देखूँ हर पग पर राम बहुत हैं/6

“प्रीतम”चलना आँखें खोल सदा ही
राहे-पत्थर के पैगाम बहुत हैं/7

-आर.एस.प्रीतम

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