Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 May 2024 · 1 min read

रास्तों के पत्थर

कितनी दूर निकल आए हम चलते चलते
मंजिलें कुछ नई हैं ,रास्ते भी
एक दिन था जब देखा करते थे राहें तुम्हारी
आज तुम ही बन गए हो राहें मेरी
यही तो चाहा था सदा कि हम साथ रहें
हर कदम,हर रोड़ा, बन जाती है सुनहरी छांव
जब साथ होते हो तुम
रास्ते के पत्थरों पर ही साथ सांसें ले पाते हैं
जहां सुस्ता लेते हैं हम साथ
चलते समय तो निगाहें होती हैं बस रास्तों पर
मांगती हूं नई मंजिलें भी और रास्ते भी
लेकिन हर रास्ते पर कोई पत्थर जरूर हो
जहां हम तुम साथ बैठ सुस्ता सकें….

1 Like · 80 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ये अश्क भी बे मौसम बरसात हो गए हैं
ये अश्क भी बे मौसम बरसात हो गए हैं
Gouri tiwari
माँ ....लघु कथा
माँ ....लघु कथा
sushil sarna
4671.*पूर्णिका*
4671.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कूष्माण्डा
कूष्माण्डा
surenderpal vaidya
पैसे कमाने के लिए लोग नीचे तक गिर जाते हैं,
पैसे कमाने के लिए लोग नीचे तक गिर जाते हैं,
Ajit Kumar "Karn"
शुभ प्रभात संदेश
शुभ प्रभात संदेश
Kumud Srivastava
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस...
राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस...
डॉ.सीमा अग्रवाल
कविता
कविता
Rambali Mishra
A daughter's reply
A daughter's reply
Bidyadhar Mantry
बड़े दिलवाले
बड़े दिलवाले
Sanjay ' शून्य'
आज के ज़माने में असली हमदर्द वो, जो A का हाल A के बजाए B और C
आज के ज़माने में असली हमदर्द वो, जो A का हाल A के बजाए B और C
*प्रणय*
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
वसियत जली
वसियत जली
भरत कुमार सोलंकी
6. *माता-पिता*
6. *माता-पिता*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
हम तो मर गए होते मगर,
हम तो मर गए होते मगर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बहुत अंदर तक जला देती हैं वो शिकायतें,
बहुत अंदर तक जला देती हैं वो शिकायतें,
शेखर सिंह
काश जज्बात को लिखने का हुनर किसी को आता।
काश जज्बात को लिखने का हुनर किसी को आता।
Ashwini sharma
প্রশ্ন - অর্ঘ্যদীপ চক্রবর্তী
প্রশ্ন - অর্ঘ্যদীপ চক্রবর্তী
Arghyadeep Chakraborty
*रामदेव जी धन्य तुम (नौ दोहे)*
*रामदेव जी धन्य तुम (नौ दोहे)*
Ravi Prakash
" जीत के लिए "
Dr. Kishan tandon kranti
तुम मुझे सुनाओ अपनी कहानी
तुम मुझे सुनाओ अपनी कहानी
Sonam Puneet Dubey
जिसे सुनके सभी झूमें लबों से गुनगुनाएँ भी
जिसे सुनके सभी झूमें लबों से गुनगुनाएँ भी
आर.एस. 'प्रीतम'
कितना और बदलूं खुद को
कितना और बदलूं खुद को
इंजी. संजय श्रीवास्तव
आ लौट के आजा टंट्या भील
आ लौट के आजा टंट्या भील
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
अब हम उनके करीब से निकल जाते हैं
अब हम उनके करीब से निकल जाते हैं
शिव प्रताप लोधी
क्या लिखूं ?
क्या लिखूं ?
Rachana
" मुरादें पूरी "
DrLakshman Jha Parimal
हक़ीक़त ने
हक़ीक़त ने
Dr fauzia Naseem shad
कल्पित
कल्पित
Mamta Rani
Loading...