राष्ट्र वही है विकसित जागी जहाँँ जवानी
वर्तमान समाज भौतिकता की चकाचोंध में फँस कर स्वयं को ही दाव पर लगा बैठा है| प्रकृति के चक्र से किसी को बच निकलने की छूट नहींहै| उसकी कर्मों के अनुरूप फल प्रदान करने की नियति सभी के लिए समान है |विज्ञान भी यही कहती है कि प्रत्येक क्रिया की विपरीत प्रतिक्रिया होती अर्थात मनुष्य, समाज द्वारा किए गए कर्मों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया होती है जो परिणाम (फल )के रुप में हमारे सामने आती है |मानव ने भौतिक विकास के क्रम में अग्रसर हो शरीर के सुख के लिए विभिन्न साधन जुटाए, कल-कारखानों का निर्माण कर आम-जन के समक्ष परिवहन,विद्युत जैसी आवश्यकता की पूर्ति हेतु साधनों का अंबार लगा दिया, इन्हें प्राप्त करने के लिए मानव ने अर्थ के क्षेत्र में दौड़ना प्रारंभ किया, किसी ने सही तो किसी ने गलत कृत्य कर धन प्राप्त कर सुख के साधन जुटाने का प्रयास किया, यही से मनुष्य के भाव के विकास का क्षरण का क्रम प्रारंभ हुआ| पीपल वृक्ष जिसे समाज ब्रह्म मानकर पूजती थी आज वही समाज पीपल पर आरी चलाने लगी है ,जंगल उजड़कर रेगिस्तान में बदलने लगे हैं, जल, वायु, पृथ्वी एवं ध्वनि प्रदूषण ने मानव मन को ही विकृत कर डाला है जिससे वह (मानव) भौतिकवाद में ही आनंद के सपने सँजोने लगा है, जबकि आनंद आत्मा का गुण है, आत्मा आध्यात्म है जो की आध्यात्मिक प्रक्रिया अर्थात भारतीय संस्कृति के साथ समन्वय स्थापित करने,चित्त की वृत्तियों के निरोध के बाद ही प्राप्त हो सकता है |मानव ने जैसा कर्म किया वैसा फल उसक समक्ष है |वृक्षों की कटाई एवं कल कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं के कारण बढ़ते हुए प्रदूषण ने ओजोन परत को ही विकृत कर दिया है| निरंतर हो रही तापमान में वृद्धि के कारण पहाडों पर जमी हुई वर्फ अत्यधिक मात्रा में पिघलने लगी जिससे समुद्र का तल एक इंच प्रतिवर्ष बढ रहा है | वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि यह स्थिति बरकरार रही तो 50 साल बाद ओसमान जलमग्न हो जाएगा| बृक्षों की कटान के कारण ऑक्सीजन के भंडार में हो रही कमी से जहां मानव अस्तित्व का संकट सामने है, वही जनसंख्या वृद्धि ने इसे और विस्तृत कर दिया है| प्रदूषण के कारण ऑक्सीजन के भंडार में जहरीली गैसों के मिल जाने से मानव नए नए रोगों की विभीषिका से जुड़ने के लिए विवस है जब वर्तमान यह है तो भविष्य क्या होगा यही चिंतन का विषय है |
अटल आत्मविश्वास ,बज्र-सा मानस तेरा|
जिस दिन बन जाएगा उस दिन नया सवेरा||
दिख लाएगा उन्नति का सूरज चढ़ता-सा|
होगा सत्यनाश,दीनता औ जड़ता का||
कह “नायक” कविराय बनो मानव तुम ज्ञानी|
राष्ट्र वही है विकसित जागी जहाँ जवानी||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए”एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता
मेरा उक्त लेख “दैनिकअमर उजाला” समाचार पत्र कानपुर दिनांक 4 मई 1999 के पृष्ठ संख्या 6 पर विचार स्तंभ में “खास खत” के रूप में छप चुका है/प्रकाशित हो चुका है |
1999 में मै उरई में रहता था|
बृजेश कुमार नायक
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