राष्ट्र के प्राणाधार !
राष्ट्र के प्राणाधार !
शांत सुसभ्य सुशिक्षित शीतल,
सभ्य पावनी मनोहारी निश्छल ;
दिव्य सभ्यता के,
मूर्त्तमान साकार ,
मेरे महान राष्ट्र के,
हे प्राणप्रिय आधार !
तुम ही हो दिव्य प्रभा समेटे,
तुझसे संवहित सार संसार;
मस्तक की शोभा भव्य प्राणमय,
तुझसे संचरित जीवन आधार !
ज्ञान दर्शन दिव्य अलौकिक,
लिये विराट धवल धार ;
ऋषियों के पुण्य प्रसून वाटिका में,
तेरे वैभव आगाध अपार !
वाद में प्रतिवाद में , हर्ष में विषाद में ;
शास्त्र के अनुसंधान में, शस्त्र के संधान में;
भुजदण्डों में शोभित लौह दृढ़ आधार ;
प्राणमयी धरती के पूरित तुझसे श्रृंगार !
नवयुगल के प्रेम-पुष्प , विरहणियों के प्रीत खिलें ;
वसुधा के स्नेहिल आंचल में, भांति भांति के रीत मिलें !
भयाक्रांत जीवों में अभय-भाव , लिए शस्त्र प्रहार ;
हे पुण्यभूमि के प्राणाधार !
तूझसे पालन तूझसे संहार …!
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’