राष्ट्र अवनतिरूपमय भ्रम पकड, पंगा हो गया
प्रेम-पथ पर चला उस का ज्ञान गंगा हो गया|
बहा उल्टा जगत-तम का पूत चंगा हो गया|
ज्ञानी बन, यदि शांत तुम, नितांत फूटे ढोल-सम|
राष्ट्र अवनतिरूपमय भ्रम पकड, पंगा हो गया |
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच ऋषि आलोक”कृतियों के प्रणेता
पंगा= लँगड़ा,पंगु