रावण के मन की पीड़ा —आर के रस्तोगी
इस बार दशहरे पर रावण राम से बोला |
था रामलीला मैदान में तन कर बोला ||
तुम मुझ पर हर वर्ष बाण चलाते हो |
बाण चला कर मुझको जलवाते हो ||
फिर भी जल कर मै नहीं मर पाता हूँ |
अगले वर्ष जिन्दा होकर लौट आता हूँ ||
पर्यावरण को इस तरह दूषित बनाते हो |
भारत की जनता को इस तरह सताते हो ||
पड़ोस में बैठा है जो शासक पाक में |
जो मिला रहा है विश्व को ख़ाक में ||
उस पर क्यों नहीं बाण चलाते हो ?
उसको क्यों नही सबक सिखाते हो ?
उसने ही असली आंतक मचाया है
कश्मीर को उसने दोजख बनाया है
आंतकवाद को क्यों नही मारना चाहते हो ?
क्या बिगाड़ा है जो मुझ पर बाण चलाते हो ?
आर के रस्तोगी