राम
मर्म हमे इस जीवन का बतलाते हैं राम।
धर्म पर चलना सबको सिखलाते हैं राम।।
होकर परम पिता परमेश्वर साधारण हैं राम।
मात पिता गुरु वाणी का पालन करते राम।।
अहंकार के शिव धनु का खण्डन करते राम।
तजकर राजमहल के वैभव वन में भटकें राम।।
मृग मारीच गीध गणिका को ह्रदय लगाते राम।
बैठ कुटिया में शबरी के हाथों बैरें खाते राम।।
अंतर्यामी होकर सिया का पता पूजते राम।
हैं सर्वज्ञ सृष्टि कर्ता पर सेतु 3बनाते राम।।
चाहें तो प्रलय मचा दें पर रावण से लड़ते राम।
शरणागत की रक्षा करते सुख वैभव देते हैं राम।।
ऊंच नीच का भाव नहीं सबको ह्रदय लगाते राम।
जन जन के मन मंदिर में पूजे जाते राम।।
जिस रूप में देखोगे उस रूप में दिखते राम।
बोलों राम राम राम बोलो राम राम राम।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा ( एम पी)