राम लक्ष्मण से
राम लक्ष्मण से
सुग्रीव के प्रति
कलाधर घनाक्षरी
वायदा सुकंठ भूल,राज काज,साज लीन,
चार माह बीतने हुए नहीं पता चला।
लाभ हानि सोच मीत प्रीत जो करे सदैव,
भूल मित्र काम छांट पाय न कभी भला।
वारि हीन मीन दीन सा रहा बचात प्रान,
मार शत्रु को दिया, विलास भाव में ढला।
ज्ञान से सचेत मित्र को करें जगायँ भाव,
नांहि तो बुझे सनेह दीप जो कभी जला।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर