राम की रहमत
क्या ? इतना वक़्त बिताने के बाद आये हैं,
अजी, सबके अहसान चुकाने के बाद आये हैं।
मुझे पता था, कि सवालों की झड़ी लग जाएगी,
हम भी मुँह में दही जमाने के बाद आये हैं।
रूह बनकर उतरती है, रख लेता हूँ,
आसमान से बरसती है, रख लेता हूँ,
मुझ खाकसार को, क्या कायदा, क्या अदब,
ये तो राम की रहमत है, लिख लेता हूँ।
मेरी आँख में झाँककर देखिये तो जरा,
इनमें खौफ का कोई कतरा है क्या,
हाँ-हाँ, ये अंदाजा है हमें, कि
इस बात में दिक्कत है क्या, खतरा है क्या।
वो किसी बुर्ज की बुलंदियों पर बैठा था,
एक जवान रस्सी की तरह ऐंठा था,
सिर उठाकर पुकारने ही वाले थे उसे,
वो थोड़ा और ऊपर चढ़ गए।
वफ़ादारी की निशानी माँगी है,
कोई अज़ीज़ कुर्बानी माँगी है,
वो शायद बहुत भूखा होगा,
थोड़ी और बिरयानी माँगी है।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”