*रामलला*
मंगल पावन बेला आई
रघुनंदन को संग ले आई
अवध में लाखों दीप जले
धन्य हुई तब सरयू माई।
जगमग अनगिनत दीप जले
गृह,नगर वंदनवार से सजे
प्रखर रवि से नभ पे छाये
हर्ष,अपार संग प्रभु आये।
ढोल,नगाड़े व ताशे बाजे
मुख उज्जवल सी आभा साजे
रम्य छवि तो बरबस ही निहारें
जय श्री राम जनजन पुकारें
नभ भी सादर अभिनंदन करता
रघुनाथ जी का स्वागत करता
भू धरा सब हाथ जोड़े खड़े
संग लिये सुमन,कुमकुम धरे।
राममयी हुई दुनिया सारी
रामलला की सूरत न्यारी
सज उठी अयोध्या दुल्हन सी
जानकी,लखन ,रघुवीर जी
छवि रघुवीर की यूँ निहारूं
सियाराम मन ही पुकारूं
सजीव नयन कुछ बोल रहे
हॄदय में अमृत घोल रहे।
धर्म, आस्था आज विजयी हुई
असत्य,मिथ्या यूँ पराजित हुई
प्रभु चरण सम कमल तिहारे
आज अवध रामलला पधारें।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक