रामराज्य आ जाए
रामराज्य आ जाए
हे प्रभु! पुनः राम राज्य आ जाए कि जी भरकर तब ‘राम’ सुनाऊं।
जनसाधारण जब कष्ट रहित हों, दैहिक दैविक भौतिक जो हो
धनी गरीब जन सभी सुखी हों, यथा योग्य निज कर्म में रत हों
जहां हो जितनी उन्हें जरूरत , प्राप्य उन्हें हो, संतुष्टि उनकी हो
सर्व सुलभ हो शिक्षार्जन, फिर सभी सुसंस्कृत, सभी गुणी हों
कहीं न पद के हित षड्यंत्र हो, असहिष्णुता अस्तित्वहीन हो।
प्रभु ऐसा राम राज्य आ जाए मैं जी भरकर तब ‘राम’ सुनाऊं।
कपट, लूट, अपहरण, वसूली, माफियागिरी अनसुना शब्द हो
गोली-गाली या पत्थरबाजी, अभिशापों से यह राष्ट्र मुक्त हो
जाति-धर्म हिलमिल प्रसन्न हों, घृणारहित निर्विवाद जीवन हो
सहकार , सर्वत्र हो भाईचारा, समुदाय परस्पर प्रेमवान हों
ऊंच-नीच विभेद विगत हो, ईर्ष्याहीन जग कर्म प्रधान हो।
प्रभु ऐसा राम राज्य आ जाए
मैं जी भर कर तब ‘राम’ सुनाऊं।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।