रामपुर में अग्रवालों का इतिहास :-
रामपुर में अग्रवालों का इतिहास :-
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जब से रामपुर बसा है ,राजद्वारा और उसके आसपास के क्षेत्रों के मोहल्लों में अग्रवालों का निवास रहा है। यह प्राचीन मौहल्ले पुराने आस्थावादी बुजुर्ग हिंदुओं के नाम पर थे ।अग्रवालों के बड़ी संख्या में परिवार सैकड़ों वर्षों से इन्हीं राजद्वारा और उसके आसपास के मोहल्लों और गलियों में बसे हुए हैं । सैकड़ों वर्ष पुराना इतिहास यद्यपि उपलब्ध नहीं है लेकिन फिर भी ऐसा सुनते आ रहे हैं कि रामपुर में राजद्वारा और उसके आसपास का क्षेत्र अग्रवालों की मुख्य सक्रियता और गतिविधियों का क्षेत्र रहा है।
सर्वविदित है कि अग्रवाल मूल रूप से अग्रोहा के निवासी रहे हैं तथा बाद में वह अग्रोहा से चलकर देश के विभिन्न भागों में जाकर बसे। जिन स्थानों पर अग्रवालों ने अति प्राचीन काल से ही अपना निवास बनाया , रामपुर उनमें से एक है।
बीसवीं शताब्दी में रामपुर में अग्रवालों की सामाजिक चेतना का इतिहास मिलता है। सर्वप्रथम रामपुर में सार्वजनिक रूप से धर्मशाला का निर्माण मोतीराम जी की धर्मशाला का हुआ । यह फूटा महल निकट बैजनाथ की गली में स्थित थी । मोतीराम जी की धर्मशाला से स्वतंत्रता पूर्व शादी- विवाह आदि विशेष रुप से अग्रवाल समाज के बेटे बेटियों के होते रहते थे । बाद में यह धर्मशाला मोतीराम जी के सुपुत्र लाला लक्ष्मीनारायण जी ने सरस्वती शिशु मंदिर के लिए दे दी और फिर इसमें विद्यालय चलने लगा।
रामपुर में अग्रवालों के इतिहास का सर्वाधिक गौरवशाली पृष्ठ अग्रवाल धर्मशाला की स्थापना है । इसकी स्थापना का मुख्य श्रेय श्री मदन लाल कलकत्ता वालों को जाता है। श्री मदनलाल अग्रवाल जाति के व्यक्ति थे ।आपके पिता का नाम लाला नन्नू मल था तथा आप मिस्टन गंज क्षेत्र के निवासी थे । अग्रवाल धर्मशाला की स्थापना के समय आपकी आयु अनुमानतः 62 वर्ष लिखित है ।आपने एक मकान इसी उद्देश्य से खरीदा था तथा उसकी रजिस्ट्री दिनांक 8 जुलाई 1955 को करा कर अग्रवाल धर्मशाला के लिए समर्पित कर दिया। आपने रजिस्ट्री के अपने संकल्प में स्पष्ट लिखा कि” इस धर्मशाला का नाम अग्रवाल धर्मशाला है और सदैव यह ही रहेगा।” इस तरह वास्तव में अग्रवाल समाज के लिए समर्पित यह अग्रवालों के इतिहास का एक सबसे बड़ा सामाजिक कार्य कहा जा सकता है ।
आपने अग्रवाल धर्मशाला को चलाने के लिए 11 सदस्यों का एक ट्रस्ट बनाया जिसके सदस्य (1)लाला लक्ष्मी नारायण जी सुपुत्र लाला मोतीराम जी (2)लाला देवी दयाल जी सुपुत्र लाला रामस्वरूप जी (3) लाला मुरारी लाल जी ठेकेदार सुपुत्र लाला बाबू राम जी (4)लाला लक्ष्मी नारायण जी सुपुत्र लाला बृजलाल जी(5) लाला भिकारी लाल जी सुपुत्र लाला राम सरन दास जी (6) लाला छोटेलाल जी सुपुत्र लाला मक्खन लाल जी (7) बाबू ब्रजराज किशोर वकील सुपुत्र लाला जुगल किशोर जी (8) बाबू राधेश्याम वकील सुपुत्र लाला श्याम सुन्दर लाल जी (9) लाला शांति प्रसाद जी सुपुत्र लाला हर चरन दास जी(10) लाला रामनाथ जी ठेकेदार सुपुत्र लाला हरप्रशाद जी तथा स्वयं (11) मदन लाल जी सुपुत्र लाला नन्नू मल जी ।। उपरोक्त सभी 11 महानुभावों के नाम के आगे वैश्य लिखा हुआ था तथा यह स्वाभाविक रूप से अग्रवाल महानुभाव थे।
अग्रवाल धर्मशाला के निर्माण से रामपुर में अग्रवाल समाज की गतिविधियों को विशेष बल मिला तथा समाज की बेटे- बेटियों की शादियों तथा अन्य समारोहों में इस स्थान का बड़ा भारी योगदान रहा। देखा जाए तो एक लंबा समय रहा जब सार्वजनिक कार्यक्रमों के लिए अग्रवाल धर्मशाला से बेहतर कोई दूसरी जगह रामपुर के स्थानीय समाज के लिए उपलब्ध नहीं थी ।यह शहर के बीचोंबीच स्थित काफी बड़ी धर्मशाला थी और इसके आगे सुनसान सड़क उन दिनों रहती थी ,जिसके कारण बसों से आने वाली बारातों से शादियाँ तक यहाँ पर इसलिए सुविधा के साथ संपन्न हो जाती थी कि बसें अग्रवाल धर्मशाला के आगे खड़ी हो जाती थीं तथा रास्ते में उन बसों के खड़े होने के कारण किसी प्रकार का कोई जाम भी नहीं लगता था ।अपने समय में यह धर्मशाला बहुत लोकप्रिय रही तथा उस समय जबकि न तो कोई होटल बने थे और न ही होटलों में शादी-ब्याह तथा अन्य कार्यक्रमों के आयोजन का रिवाज था। ऐसे में अग्रवाल धर्मशाला ही जनता के क्रियाकलापों का एकमात्र केंद्र थी ।
अभी भी समय में बहुत परिवर्तन आया आया है लेकिन इस धर्मशाला का उपयोग धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रायः होता रहता है तथा यहां मंदिर में भक्तजन बड़ी संख्या में जाते हैं। साथ ही साथ यहां श्री रामनाथ ठेकेदार द्वारा एक सत्संग भवन भी बनवाया गया और उसमें निरंतर अग्रवाल समाज के ही श्री बृजवासी लाल जी भाई साहब , तदुपरांत श्री रवीन्द्र भूषण गर्ग जी तथा वर्तमान समय में श्री विष्णु शरण अग्रवाल सर्राफ द्वारा अत्यंत निष्ठा के साथ सत्संग भवन में सत्संग का कार्यक्रम आयोजित होता है । विष्णु शरण जी के विद्वत्तापूर्वक संचालन द्वारा कार्यक्रम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई है तथा उनकी अनुशासन प्रियता इस प्रकार है कि कार्यक्रम को वह निश्चित समय से आरंभ करते हैं तथा सुनिश्चित समय पर ही समाप्त कर देते हैं। ऐसा समयबद्धता का अनुशासन संपूर्ण भारत में शायद ही गिने-चुने स्थानों पर होगा।
अग्रवाल धर्मशाला के समीप ही मत्तननलाल जी की धर्मशाला के नाम से लोकप्रिय एक अन्य धर्मशाला भी है, जो अग्रवालों के द्वारा ही स्थापित है । इसका भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।
अग्रवाल समाज के ही श्री सीताराम जैन का योगदान रामपुर की रामलीला को नुमाइश के मैदान में 1948 में शुरू कराने में रहा ।(रामपुर के रत्न पृष्ठ 43 )
वास्तव में रामलीला विधिवत रूप से 1949 में रामलीला मैदान में होनी शुरू हुई। इसके अध्यक्ष श्री मुरारीलाल ठेकेदार तथा संयुक्त सचिव श्री देवी दयाल गर्ग बने। बाद में श्री देवी दयाल गर्ग ने अपनी निष्ठा और समर्पण भाव से रामलीला के आयोजन को इतना ऊँचा स्थान दिया कि संपूर्ण भारत में जो सर्वश्रेष्ठ रामलीलाएं संचालित हो रही हैं उनमें रामपुर की रामलीला की गिनती आज की जाती है । रामलीला वैसे तो अग्रवाल जाति की गतिविधि नहीं है लेकिन फिर भी यह अग्रवालों के योगदान का एक अच्छा उदाहरण है।
रामपुर में अग्रवालों का संगठन काफी पुराना रहा है ।बीसवीं शताब्दी के शुरू में “अग्रवाल नवयुवक सभा” बनी ।रामपुर में यह रियासत काल की एक प्रमुख सार्वजनिक गतिविधि थी। इसके संचालन में श्री देवी दयाल गर्ग प्रमुख थे। 1932- 33 के आसपास श्री देवी दयाल गर्ग ने इसको स्थापित किया। यह नवयुवक अग्रवाल सभा अग्रवाल समाज में कुरीतियों को दूर करने और अग्रवाल बंधुओं के विवाह आदि अवसरों पर मदद देने का काम करती थी। उन दिनों बरातें एक दिन की नहीं होती थीं। इस नवयुवक सभा की मुख्य दिलचस्पी बरातों में दावतें केवल एक ही समय तक सीमित करने के पक्ष में रहती थी। आज यह एक समय की दावत प्रथा आम बात हो गई है ,मगर 50 साल पहले इसके लिए प्रयास करना निश्चय ही एक बड़ी बात रही होगी। इस सभा के सेक्रेटरी स्वयं श्री देवी दयाल गर्ग थे और अध्यक्ष श्री शिवदयाल बर्तन वाले थे । इसके अतिरिक्त अन्य सहयोगियों में सर्व श्री श्याम मूर्ति सरन कपड़े वाले( मुरारीलाल प्रेम रस के सुपुत्र), राममूर्ति सरन क्राकरी वाले और रूपकिशोर थे। ( रामपुर के रत्न, प्रष्ठ 31- 32)
1938 में रामपुर में अग्रवाल सभा स्थापित हुई ।अग्रवाल सभा काफी शक्तिशाली थी और इसके माध्यम से काफी सामान खरीदा गया और अग्रवाल समाज में बहुत काम किया गया। श्री देवी दयाल जी अग्रवाल सभा रामपुर के संस्थापक सेक्रेटरी बने और इसके अध्यक्ष श्री लाला मक्खन लाल जी (श्री ओमप्रकाश सर्राफ के पितामह )थे। अग्रवाल सभा की उस दौर की सेवा परक रचनात्मक व्रत्तियों में जिन महानुभावों ने काफी सक्रियता पूर्वक काम किया उनमें सर्व श्री राधेश्याम वकील, देवकीनंदन वकील, लाला छेदा लाल जी, लाला भिकारी लाल सर्राफ , लाला लक्ष्मीनारायण पीपल टोले वाले और लाला मुरारीलाल ठेकेदार के नाम हैं। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि श्री देवीदयाल गर्ग की सूझबूझ और परिश्रम इन सब में मुख्य रूप से काम कर रहा था । जो सामान सभा का मँगाया – खरीदा जाता था, वह श्री राजाराम खजांची के घर पर रखा रहता था और इस नाते वह भी निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा कर रहे थे ।(रामपुर के रत्न पृष्ठ 31- 32 )
अग्रवाल सभा रामपुर की गतिविधियों में महत्वपूर्ण योगदान श्री सीताराम जैन का रहा है ।आप 1976 से 1986 तक( बीच के दो-तीन वर्षों को छोड़कर) लगातार अध्यक्ष रहे । अग्रवाल सभा रामपुर का रजिस्ट्रेशन सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के अंतर्गत श्री ओमकार शरण ओम( पत्रकार संपादक रामपुर समाचार निवासी कैथ वाली मस्जिद रामपुर )के द्वारा अग्रवाल सभा रामपुर की सदस्य कार्यकारिणी व पदाधिकारियों का चुनाव दिनांक 30-7-1988 को करने के उपरांत कराया गया। श्री ओमकार शरण ओम इसके अध्यक्ष थे तथा अन्य इसकी कार्यकारिणी के सदस्य और पदाधिकारी थे । कुल संख्या 22 थी । अग्रवाल सभा ने अपना मुख्य उद्देश्य “अग्रवाल जाति की कुप्रथाओं में सुधार करना” घोषित किया था ।अग्रवाल सभा रामपुर की सदस्यता के अंतर्गत यह उल्लिखित है कि प्रत्येक अग्रवाल व्यक्ति जो 18 गोत्रों में से किसी एक को धारण करता हो ऐसा व्यक्ति ही अग्रवाल सभा का सदस्य बन सकेगा । तात्पर्य यह है कि अग्रवाल की परिभाषा के अंतर्गत 18 गोत्रों को शामिल किया गया है तथा इनसे बाहर का कोई अन्य गोत्र का व्यक्ति अग्रवाल की श्रेणी में नहीं माना गया। अग्रवाल सभा ने अपने स्वरूप में यह भी घोषित किया कि ” संस्था अग्रवाल सभा रामपुर का संगठन अपने दृष्टिकोण में उदार होगा । वह अपने समाज के हितों की रक्षा तथा उसका विकास और सुधार करता हुआ राष्ट्र , धर्म और संस्कृति को कोई भिन्न इकाई न मानते हुए भारतीय राष्ट्र तथा समाज का एक अभिन्न अंग होगा जिसका मुख्य उद्देश्य अग्रवाल जाति की कुप्रथाओं में सुधार करना होगा ।”इस तरह अग्रवाल सभा तथा रामपुर में अग्रवालों की गतिविधियों का दायरा निरंतर विकसित होता रहा ।
अग्रवालों का रामपुर में विविध क्षेत्रों में काफी बड़ा योगदान रहा है। शिक्षा, चिकित्सा ,व्यापार,राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में अग्रवालों का योगदान सराहनीय है । प्रोफ़ेसर मुकुट बिहारी लाल रामपुर के बाजार सर्राफा मिस्टन गंज के मूल निवासी रहे तथा आपने राज्यसभा के सदस्य के रूप में ,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के नाते महामना मदन मोहन मालवीय के सहयोगी तथा समाजवादी आंदोलन को जयप्रकाश नारायण तथा आचार्य नरेंद्र देव के साथ मिलकर कार्य करने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण कार्य भारत के इतिहास में किया।
स्वतंत्रता आंदोलन में श्री सतीश चंद्र गुप्त एडवोकेट 4 अप्रैल 1943 से 13 जुलाई 1945 तक विभिन्न जेलों में बंदी रहे।
प्रोफ़ेसर ईश्वर शरण सिंहल ने कहानीकार तथा उपन्यासकार के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अच्छी पहचान बनाई तथा अग्रवाल जाति का नाम ऊँचा किया। आप रामपुर के राजद्वारा क्षेत्र के ही निवासी थे।
इस तरह रामपुर में अग्रवालों की गतिविधियों तथा अग्रवालों के सार्वजनिक जीवन में योगदान का दायरा विस्तृत तथा बहुआयामी है । यह निस्वार्थ राष्ट्रीय चेतना तथा सामाजिक योगदान की प्रवृत्तियों से सम्मानित रूप से जुड़ा हुआ है, जिस पर कोई भी समाज स्मरण करते हुए सहज ही गर्व की अनुभूति कर सकता है।
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लेखक : रवि प्रकाश पुत्र श्री रामप्रकाश सर्राफ ,बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451