*रामपुर के पाँच पुराने कवि*
रामपुर के पाँच पुराने कवि
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रामपुर रजा लाइब्रेरी फेसबुक पेज दिनांक 2 मई 2020 के प्रकाशित लेख की समीक्षा
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आपने आज रामपुर के पाँच पुराने कवियों के संबंध में प्रकाश डाला है
प्रथम कवि बदीचंद हैं। इनकी कोई भी रचना उद्धृत नहीं की है । करनी चाहिए थी।
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दूसरे कवि उस्ताद महमूद रामपुरी हैं। (1865- 1934 ईस्वी )आपका एक शेर सौभाग्य से उद्धृत किया गया है ,जो इस प्रकार है :-
मौत उसकी है करे जिसका जमानाअफसोस
यूँ तो दुनिया में सभी आए हैं मरने के लिए
न जाने कितनी बार शोक के अवसरों पर हम सब ने इस शेर को पढ़ा और सुना है। सराहा है । यद्यपि हम नहीं जानते थे कि इस शेर के रचनाकार रामपुर से संबंध रखने वाले उस्ताद महमूद रामपुरी हैं । आप दाग देहलवी के शिष्य थे और दाग देहलवी का कई दशकों तक रामपुर के राज दरबार से गहरा संबंध रहा । उस्ताद महमूद रामपुरी के उपरोक्त शेर के सामने बड़े-बड़े काव्य संग्रह फीके पड़ जाएँगे । भाषा इतनी सरल कि देवनागरी में लिखें तो हिंदी कहलाएगी और फारसी लिपि में लिख दें तो उर्दू का हो जाएगा । “जज्बाते महमूद” आपका काव्य संग्रह है जिसे प्रकाशित किया जाना चाहिए । पता नहीं इसमें कितना अनमोल काव्य का खजाना हमें मिल जाए । वास्तव में उस्ताद महमूद रामपुरी की प्रतिभा तथा उनके योगदान का संपूर्ण मूल्यांकन शायद अभी नहीं हो पाया है । यह नाम रामपुर में भी अनजान है , रामपुर के बाहर तो फिर इसे शायद ही कोई पहचानता होगा ।
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तीसरे कवि मुंशी अशर्फीलाल बिस्मिल हैं। यह भी रामपुर के पुराने कवि तथा अमीर मीनाई के शिष्य थे। “इंतिखाबे यादगार” में इनकी रचना होनी चाहिए थी। खैर यह तो पता चलता ही है कि बिस्मिल उपनाम अपने समय में बहुत से कवियों ने रखा और यह बहुत प्रचलित और लोकप्रिय उपनाम था। तथा रामपुर के भी एक कवि ने रखा था।
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चौथे कवि चौबे बलदेव दास हैं । इन्हें चौबे बलदेव दास तिवारी लिखना गलत है। जो चौबे है ,वह तिवारी नहीं हो सकते। वेद के आधार पर तीन प्रकार की परंपराएं चलती हैं । द्विवेदी , त्रिवेदी और चतुर्वेदी। चतुर्वेदी को चौबे ,त्रिवेदी को तिवारी द्विवेदी को दुबे भी कहते हैं । कवि बलदेव दास चौबे ने 13वीं शताब्दी के प्रसिद्ध फारसी कवि शेख सादी की फारसी में लिखित “करीमा” पुस्तक का हिंदी ब्रजभाषा देवनागरी लिपि में दोहे और चौपाईयों के माध्यम से अनुवाद नवाब कल्बे अली खान के आग्रह पर किया था । 1873 ईस्वी में बरेली रुहेलखंड लिटरेरी सोसायटी प्रेस में यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी ।
“नीति प्रकाश” का एक सुंदर दोहा देखिए :-
गर्व न कबहू कीजिए ,मानुष को तन पाइ
रावण से योधा किते , दीने गर्व गिराइ
(पृष्ठ 8)
आपके वंशज राधा मोहन चतुर्वेदी रामपुर दरबार के राजकवि थे। जब नवाब रजा अली खान महात्मा गाँधी की अस्थियाँ लेने के लिए कुछ गिने-चुने विद्वानों के साथ रामपुर से दिल्ली गए, तब राधा मोहन चतुर्वेदी भी उनके साथ थे। राधा मोहन चतुर्वेदी एक कथा वाचक भी थे। अपनी कथा में वह निम्नलिखित रचना श्रोताओं के समक्ष नियमित रूप से उपस्थित करते थे। रचना इस प्रकार है :-
मेरी लाज रघुराज के हाथ में है
धनुष बाण जिनके वरद हाथ में है
न चिंता मुझे लोक परलोक की है
अमित शक्ति श्री जानकी नाथ में है
यह कलिकाल क्या बाल बाँका करेगा
कृपा श्री कृपानाथ की साथ में है
अगोचर अगम ब्रह्म गोचर सुगम है
यह सामर्थ्य मोहन प्रनत माथ में है
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पाँचवें कवि प्राण सिंह की मृत्यु लगभग 200 वर्ष पूर्व 55 वर्ष की आयु में हुई ।आपने गंगा नदी पर एक सुंदर पद लिखा है, यह जानकारी तो मिली लेकिन उसका उद्धृत होना बहुत जरूरी था। प्राण सिंह ब्राह्मण नहीं हो सकते। ब्राह्मणों में “सिंह” कोई नहीं लिखता । आप पेशे से सर्राफ थे, अतः रामपुर रियासत के संभवतः सर्वप्रथम सर्राफा व्यवसाई कवि कहे जा सकते हैं।
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समीक्षक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451