रानी दुर्गावती (रोला छंद)
रानी दुर्गावती
रोला छंद ११/१३
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रानी दुर्गावती, मंडला की महरानी।
मुगलों से रण ठान, रखा भारत का पानी।
लड़ी लड़ाई गजब, भवानी चंडी काली।
काट काट अरि मुंड, भेंट रुद्रहिं दे डाली।
दिल्ली में जा लगी,खबर यह घमासान की।
हालत हुई खराब , शाह अकबर पठान की।
था चर्चा में रूप, रंग गुण सुंदरता का।
वो फहराना चहे,,हवस की विजय पताका।
इसीलिए ही खास, बड़ा हमला करवाया।
आसफखां को सेन, सहित लड़ने भिजवाया।
अजमा सारा जोर , हुये उल्लू के पट्ठे ।
दुर्गा दिया खदेड़, दांत सबके कर खट्टे ।
खा अकबर ने खार, हार कर हार न मानी।
फिर फिर हमला किया, भेज कर सेन पठानी ।
पर रानी हरबार, वीरता से टकराई।
दिल्ली के सरताज, याद नानी की आई ।
लंबी चौड़ी फौज,भिजाई लोहा लेने।
लेकिन करके जंग, पड़े लेने के देने।
लौटें खाली हाथ, बड़ा छल जाल बिछाया।
कुछ को धन का लोभ, भेद देने भरमाया।
हो फिर से तैयार,लगा सेना का फेरा ।
इक नाले के पास, खास रानी को घेरा।
कर रानी मुठभेड़, छेड़ दी विकट लड़ाई ।
सैनिक मुट्ठी भरे, अचानक नौबत आई।
पंद्रह चौंसठ जून ,माह यह अवसर पाया।
लड़ते लड़ते तीर,ऑंख में आन समाया।
रानी उसे निकाल, शत्रु सेना पर टूटी।
गोली धसी शरीर, लगा ज्यों किस्मत रूठी।
सेनापति आधार, कहा अब मुझको मारो।
यवन न तन छू सकें, धर्म की नीति विचारो।
सकुचाया आधार,वार करने में भारी ।
रानी लिए कटार , स्वयं सीने में मारी।
मौत सहेली बना, गले से स्वयं लगाई।
पर जीते जी नहीं, हाथ दुश्मन के आई।
आजादी का दीप, जलाने प्राण लुटाए।
राज किया बेजोड़ ,प्रजा को सुख पहुॅंचाये।
वृक्ष सभी फलदार, लगाये सड़क किनारे।
कुआं बावड़ी ताल, खुदाये न्यारे न्यारे।
रानी चेरी मढ़ा, ताल सब जबलपूर में।
मदन महल भी खड़ा, चमक दिख रही नूर में।
दो सोने की ईंट, गड़ीं जिसकी छाया में।
करें खुदाई लोग, हुए पागल माया में।
जो भी हो पर हुई ,अमर यह कथा कहानी।
सौ सौ तुमको नमन,धन्य दुर्गावति रानी।
गुरू सक्सेना
१५/५/२४