राधे गोपाल
राधे गोपाला
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हे गिरधारी गीरधर नागर
मेरे कृष्ण मुरार
मस्त महीना यह श्रावण का
रीम झीम गीरत फुहार।
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और न कोई तीजा होवे
एक मैं एक गोपाल,
रंग बिरंगे फूलों वाला
हरा भरा हो बाग।
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सावन झूला झूलन आई
मैं गोकुल की नार
रीम झीम- रीम झीम बरसे सावन
मद्धम चले बयार।
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सावन झूला झूल रही
हरित बृक्ष की डाल
झूला बीच बैठीं है राधा
संग में मदन गोपाल।
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दृश्य यह अनुपम छटा मनोहर
पुलकित सब नर – नार,
झूला झुलत राधा रानी
झूलत कृष्ण मुरार।।
✍✍पं.संजीव शुक्ल “सचिन”