राधा सम तुम प्रीत हमारी।
राधा सम तुम प्रीत हमारी।
रूप सुघर तन मादकता की, लगती हो फुलवारी।
कुन्तल कारे मेघ सरीखे, चितवन है मतवारी।
रूप – रंग तेरे निज मन की, पीर मिटाये सारी।
देख तुझे मन हुआ बावरा, छेड़ रहा धुन प्यारी।
पल-पल मिलने को मन मचले,कैसी लगी बिमारी।
मंदिर – मंदिर भटक रहा मैं, साथ मिले बनवारी।
सब तेरे ही कारण छोरी, हे! पितु- मातु दुलारी।।
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’