रात हुई गहरी
रात हुई गहरी सी काली
दूर हुई निसदिन लाली
परिंदों ने पंख फड़फड़ाए
नभ में भी तारे दिखलाये
जुगनू निशा से बतियाते
छिपते तो कभी चमचमाते
शशि नभ से गुपचुप झाँकता
स्वर्णिम धरा का मुख ताकता
तेज हवा दल संग सरसराई
मनमोहक सी सुगन्ध आई
रातरानी, मोगरा महका
पलाश अंगारों सा दहका
लालटेन का मद्धम उजियारा
अंबर में इक अनोखा सितारा
झींगुर,कीटों की तेज ध्वनि
धान,सरसो से सजी अवनि
काले नभ चपला चमचमाये
सुमुख पर दन्तावली दिखाए
गगन अपलक निहारता जाए
मौन धरा का मन हर्षाये।
✍”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक