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28 Jan 2024 · 1 min read

*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)

रात से दोस्ती

दिन का रात से झगड़ा
कभी नहीं है ,
जाते जाते दिन
नन्हे पन्छियों को घोंसले में छोड ,
पेड़ – पहाड – गांव – देश को ….
मखमली अंधेरे की चादर ओढा ,
रात का आलिंगन कर
नन्हे तारों को चूम कर
चांद का नाईट लेंप
ऑन करके जाता है ……
– रात भी कहाँ पीछे है ?
दोस्ती निभाने में ,
सोये पन्छियों को जगा कर
थोड़ा उनके साथ चहचहा कर ,
सूरज को गोद में उठा कर
सबसे ऊँचे पहाड़ पर बैठा कर ,
दिन को असीम किरनें ,
तोहफे में दे कर ,
मन्दिरों की घंटीयाँ बजवा
तारों की गहरी नीली चादर ओढ़
लौट जाती है घर को …
– क्षमा ऊर्मिला

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