रात रात भर रजनी (बंगाल पर गीत)
गीत (बंगाल पर)
रात रात भर रजनी जागे
सहमी भोर दुलारी
जब आंखें मूंदे जमघट हो
क्या कहती बेचारी
दिल भी रीता, आँखें सूखी
शोर न करती वाणी
सन्नाटे को चीर रही है
बेबस बड़ी कहानी
कैसा भाग लिखा पंचाली
दुखी आज हर नारी!
क्या कहती बेचारी।
विचलित मन से, क्रंदन क्रंदन
आंदोलन आभासी
कुछ दिन का उन्माद रहेगा
फिर से वही उदासी
जीवन भर जो गरल पिए हैं
वो सांसें दुश्वारी
क्या कहती बेचारी।
भ्रम में जीता है जग सागर
सीता को दुख देता
राधा राधा रटने वाले
कलियुग के अभिनेता
चीर हरण करते मर्यादा
छद्म वेश संसारी
क्या कहती बेचारी।।
सूर्यकांत