रात चांदनी में काम कामिनी
●● रात चाँदनी मे काम कामिनी ●●
है जो रोज मेरे छत पर उतरता हुआ वह कौन है ।
दिखता तो बङा चंचल है पर मौन क्यों है ।
जुगनू तो नही वो पर चमक भी बड़ी तेज है ।
मन सोच में है डूबे आखिर ये कैसा रूप -भेष है ।
वो अब समझ में आया ।
शायद ये चांदनी की रोशनी है ।
सुहागरात की जीवनदायिनी है ।
आशिकी है मौशिकी है ।
अंग-अंग सिहर उठता है जिसमे वो रवानगी है ।
तभी तो मै सोचू ये कामदेव भी आता भी क्या खूब है ।
शीतल, सर्द मे जैसे आती धूप है ।
आओ कामिनी पास मेरे ।
आई है रूत भी क्या ये घेरे ।
लगा तो चुके है सात फेरे ।
जिंदगी में लगाते है गोते ।
अब संग मे चलते है सोते ।
सिहर उठा इस रोशनी मे कामिनी तेरा बदन ।
तू शीतल चंदन -आ बना ले बंधन।
होगा तभी तो बच्चो का क्रंदन ।
आएंगे मेरे लाडले नन्दन ।
रात है चांदनी की बरसात है ।
शायद जिंदगी की जन्नत इन्ही लम्हो मे तैनात है ।
आओ बना ले हम संगम ।
बहती दो धारा एक हो ।
मिले जो हम तो जनसंख्या में विस्फोट हो ।
चांदनी रातो मे मजा तेरी पतंग मेरा मांझा ।
मै तेरा हीर तू मेरी रांझा ।
बर्दाश्त की हदे कही पार न हो जाए ।
चांदनी रात कही बेकार न हो जाए।
खिल रही है मेरे कुमुदिनियो की पंखुड़ियाँ ।
विरह में जलती जाए यक्ष यक्षणिया।
इन्द्र नगर की उर्वशी परिया ।
आ चूस ले भंवरा बनकर ।
छेङ दे राग-रागिनिया ।
जब पड़े रश्मियां ।
धक-धक करे जिया ।
चांदनी रात है आज ।
मेरा करवाचौथ ।
बिछी है सेज ।
तेरे नैन की कटार।
हाय रे चांदनी रात ।
मेरे सईया डूब गए आज।
हो गई बिन सावन बरसात ।
☆☆ RJ Anand Prajapati ☆☆