रात के अंधेरों में
“रात के अन्धेरों में”
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मेरा प्रेम
उस जल की तरह है
जिस पर
लाठी की मार पड़ते ही
कुछ समय के लिए
जल,जल सें अलग हो जाता है
और कुछ समय के बाद
जल,जल में ही मिल जाता है
रात के अंधेरों में
तुम्हारा प्रेम खोजती हूँ
तब कुछ नजर नहीं आता
न तुम
और न तुम्हारा प्रेम
खुद में अंधकार को ले बैठती हूँ
शायद तुम भी चाहते हो
मैं कहीं दूर न चली जाऊँ
अंधकार से लड़कर
मुझे बार-बार बचाते हो
मुझे तो हँसी फूटती है
सैकड़ों बार
भटक चुकी हूँ
मेरे प्रेम मार्ग में
और मेरा निश्चय भी
कहाँ कठोर है?
लेकिन मुझमें
तुम्हारी उत्सुकता को देखकर
आत्मा उत्फुल्ल जाती है
मेरे पर आ जाते है
नील गगन में
दूर उड़ जाने को
मन होता है
फिर बादलों से
अठखेलियाँ करने को
ललचाती हूँ
मेरे आराध्य
तुम कभी-कभी
मेरी व्याकुलता का
अन्त कर जाते हो
खुद को छुपा-छुपाकर~तुलसी पिल्लई