रात और मेरा सूनापन
रात सोने के लिए थी
सूरज भी
रात के टीले पर
गहन निद्रा में सो गया था,
पक्षी, मीलों का सफ़र
तय करके
अपने-अपने नीड़ों में लौट गए थे,
प्रेमी-प्रेमिका
एक-दूसरे को याद करते हुए
अचानक से
पीछे को लुढ़क गए थे-
गाँवों की सड़के
सुनसान रास्तों में
तब्दील हो गयी थी,
तितलियाँ, फूलों को त्यागकर
चट्टानों से लिपटकर
सोई हुई थी-
” मैं भी सोना चाहता था ”
परंतु, मेरे अंदर का सूनापन
कचोट रहा था, मुझे!
मैं सोच रहा था
मैं अकेला हूँ
परंतु, छत मेरे साथ रो रही थी,
दुनिया कहती है
वो, बाहर बारिश हो रही थी।