रात्रि की छांँव
रात्रि की छांँव में,रूपवती-सी लगती;
भीषण गर्मी में, वर्षा की बूंँदे सजती;
शीतल पवन बयार, इतराती बलखाती आती;
मेघ के घूँघट में ,चांँद शर्म से छुप जाती;
बिजली की चमक, चंचल मन बनाती;
रात्रि की छांँव में, मनचली सी लगती ।।१।
घूंँघट की ओट से, ज्यो ही बाहर आती;
तारों के गण भी ,उत्सुक हो जाते ;
देख कर मुख ,अंधकार भी भय खाते;
हृदय के शीतल ,मन पर विजय पाते ;
कुंदन-सी लगती,चंदन-सी महकती;
रात्रि की छांँव में, मनोहारी-सी लगती ।।२।
अंधकार के काले केश,अति शोभा बढ़ाते ;
भीनी-भीनी खुशबू लेकर, पवन समीप हैं जाते,
धरती के वक्ष पर ,अमृत की बूंँदें पड़ती ;
जीवनदान पाने को ,जीव-जंतु बाहर आते ;
देख कर उसके तन को,हृदय मुस्कुरा जाते;
रात्रि की छांँव में, प्रियवर-सी लगती।।३।
मेघ का आवरण ,पवन संग बह गया;
परछाई की ओट में,यौवन उसका ढ़ह गया;
पुष्प भी खिल उठे, सूर्य जब उदय हुए;
रूप सब मीत के, प्रीत में खो गए ;
ढूंँढती अब उस महक को ,ह्रदय में जो बसती;
रात्रि की छांँव में ,कष्टकारी-सी लगती ।।४।
#बुद्ध प्रकाश
**मौदहा हमीरपुर।