रातें सारी तकते बीतीं
पहली ग़ज़ल
दिल का दिल पर असर नहीं है
जो भी कह लो, सबर नहीं है
रातें सारी तकतें बीती
फिर भी उनको खबर नहीं है
गर ना होती दिल में सरगम
साँसों का फिर सफर नहीं है।
नाते, रिश्ते, प्यार मुहब्बत
इन सबकी अब लहर नहीं है।
तुम भी गा लो अपना नगमा
गूँगी दुनिया, बहर नहीं है।।
कहते तो हालात यही हैं
भोर हुई पर सहर नहीं है।
कैदी दिनकर, चांद अकेला
फिर भी कोई कहर नहीं है
सूर्यकांत