“राज़” ग़ज़ल
किसी के दर्द को, रुसवा भी, कराऊँ कैसे,
पी गया अश्क़ सब, दामन को, भिगाऊँ कैसे।
उफ़ वो पहली निगाह, कर गई जादू ऐसा,
सुरूर अब भी है, मैं होश मेँ, आऊँ कैसे।
मुझसे मिलता है,बज़्म मेँ वो,अजनबी की तरह,
मुस्कुराने का भी, दस्तूर, निभाऊँ कैसे।
बारहा, ख़्वाब मेँ, आता है, बेधड़क मेरे,
शुक्रिया रहमतों का, उसकी, जताऊँ कैसे ।
कभी तो दौरे-गुफ़्तगू, चले तनहाई मेँ,
तवील दास्ताँ, यकमुश्त, सुनाऊँ कैसे ।
शिफ़ा भी मर्ज़ को, किस तरह से, मिले यारा ,
दिल के ज़ख्मों को, ज़माने को, दिखाऊँ कैसे l
इक मुअम्मा सा बनके, इश्क़, रह गया मेरा,
समझ आता नहीं, परवान, चढ़ाऊँ कैसे।
कुछ अनासिर,उसी के,मुझमे समाने से लगे,
अपनी पहचान, आइने को, बताऊँ कैसे l
पूछते सब हैं कि “आशा”, तुझे हुआ क्या है,
राज़ दिल मेँ है, लबों पर भला, लाऊँ कैसे..!
बारहा # बार बार, frequently
तवील # लम्बी, lengthy
मुअम्मा # पहेली, puzzle
अनासिर # तत्व, घटक, elements, constituents etc.