राजयोग महागीता:: प्रभु प्रणाम ( घनाक्षरी ) पोस्ट५
विभु राम ,नृसिंहादि रूपों में जो व्यक्त हुए ,
भगवान गोविंद का करता भजन हूँ ,
प्रभु कृष्ण रूप में जो स्वयं ही प्रकट हुए ,
उन परमब्रह्म को मैं करता नमन हूँ ।
भक्ति प्रेम- अंजन से , रंजित नयन से मैं ,
करता दर्शन नित्य करता भजन हूँ ।
जब – तब उनकी ही अहेतुकी कृपा से जो ,
होता यह सुगंधित , ऐसा मैं सुमन हूँ।।२४!!