राजनेता
#हास्य_व्यंग्य:-
राजनेता
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रंग बदलते गिरगिट जैसे, मेढक ये बरसाती।
बाप मान लें गदहे को भी, शर्म इन्हें न आती।।
जनाधार के खातिर करते, जन की खातिरदारी।
पाँच वर्ष न सुने किसी की, जबतक सत्ताधारी।।
जात धर्म की गोली देकर, जन जन को बहकाते।
भोली जनता समझ न पाती, मत ढेरों पा जाते।।
एक बार जो जीत गये फिर, कहाँ किसी की सुनते।
जबतक सत्तासीन रहें ये, नहीं किसी को गुनते।।
मत के खातिर हर दिन करते, लम्बे चौड़े दावा।
जनता को ये मुर्ख बना कर, खाते मिष्टी मावा।।
मुर्ख बनाने में इनका जी, नहीं कहीं है शानी।
श्रृंगाल भी इनके संमुख, भरते हैं जी पानी।।
भ्रष्टाचार व गबन घोटाल, करे नहीं घबराते।
पकड़े जाने पर भी यारों, तनिक नहीं शर्माते।।
इनके आगे धूर्त लोमड़ी, भरती है जी पानी।
जाग गई जो जनता जिस दिन,याद दिलादे नानी।।
****** स्वरचित★स्वप्रमाणित★मौलिक रचना*******
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार