राजनीति
#राजनीतिक परिदृश्य
कुछ ऐसे हुये आसक्त कि वो भक्त हो गये।
और हाथ की खुजली, बड़े विषाक्त हो गये।
हम तुम में उलझे रहे और वो आप हो गए।
कुछ बुलबुले जलजले हुये, कुछ भाँप हो गये।
कुछ समर्थ लोगों के जो ठेके बन्द हो गये।
एक बार फिर कई मीर और जयचंद हो गये।
बढ़ी भीड़ भक्तों की तो कुछ मग़रूर हो गये।
जख्म सदियों का, लाइलाज,नासूर हो गये।
दिखा दे आईना सच का, दिल सख्त हो गये।
कुछ हम जैसे,दलहीन दलदल में,कमबख्त हो गये।
– नवल किशोर सिंह
#नवलवाणी